सुश्री दिव्या माथुर, एफ़.आर.एस.ए.
वातायन-यूके की संस्थापक, रौयल सोसाइटी ऑफ़ आर्ट्स की फ़ेलो, आशा फ़ाउंडेशन की संस्थापक-सदस्य, ब्रिटिश-लाइब्रेरी की ‘फ़्रेंड’, पद्मभूषण मोटुरी सत्यनारायण लेखन सम्मान, वनमाली कथा सम्मान और आर्ट्स-काउन्सिल औफ़ इंग्लैंड के आर्ट्स-अचीवर जैसे अनेकों प्रतिष्ठित पुरस्कारों से अलंकृत, दिव्या माथुर विश्व हिंदी सम्मेलन-2000 की सांस्कृतिक उपाध्यक्ष, यूके हिन्दी समिति की उपाध्यक्ष और कथा-यूके की अध्यक्ष रह चुकी हैं। आप दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान में चिकित्सा-आशुलिपिक (1971-1985) रहीं, जहां आपने नेत्र-विज्ञान से सम्बंधित शब्दावली का अध्ययन किया और अपनी और नेत्र-विशेषज्ञों की सुविधा के लिए मेडिकल-आशुलिपि ईजाद की।
भारतीय उच्चायोग (1985-1992) और नेहरु केंद्र-लन्दन में वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी (1992-2016) के रूप में इन्होंने सैंकड़ों सफल कार्यक्रमों का आयोजन किया। इनका नाम ‘इक्कीसवीं सदी की प्रेणात्मक महिलाएं’, आर्ट्स कॉउंसिल ऑफ़ इंग्लैण्ड की ‘वेटिंग-रूम’, ‘ऐशियंस हूज़ हू’, ‘सीक्रेट्स ऑफ़ वर्ड्स इंस्पिरेशनल वीमेन’ जैसे कई ग्रंथों में सम्मलित है।
बहुआयामी व्यक्तित्व की स्वामिनी, दिव्या जी एक बहु-पुरस्कृत लेखिका, इमप्रसारियो, अनुवादक और संपादक हैं। इनके आठ कहानी-संग्रह (मेड-इन-इंडिया, आक्रोश, हिंदी@स्वर्ग.इन, 2050, पंगा, कोरोना चिल्ला, ज़हरमोहरा (उर्दू में), आठ कविता-संग्रह (अंतःसलिला, ख़याल तेरा, रेत का लिखा, 11 सितम्बर, चंदन पानी, झूठ, झूठ और झूठ, जीवन हा मृत्यु; बाल कविता संग्रह: सिया-सिया), तीन उपन्यास, ‘तिलिस्म’ और ‘शाम भर बातें’ (दिल्ली और अन्य विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल) और ‘मौम डैड और मैं’ (सह-लेखन), बाल उपन्यास ‘बिन्नी बुआ का बिल्ला’ और छै सम्पादित कहानी और काव्य संग्रह (Odyssey, Aashaa, Desi-Girls, इक सफ़र साथ-साथ, तनाव (दो खंड) और नेटिव सेंटस) प्रकाशित हैं। उनके कई नाटकों का सफल मंचन हो चुका है। नैशनल फ़िल्म थियेटर के लिए सत्यजीत रे के फ़िल्म रैट्रो और बीबीसी द्वारा निर्मित कैंसर पर बनी एक डाक्युमैंटरी का रूपांतर कर चुकी हैं। नेत्रहीनता के विषय पर इनकी रचनाएं ब्रेल-लिपि में प्रकाशित की जा चुकी हैं।
साहित्य अकैडमी-शिमला, जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल, विश्वरंग-भोपाल, कोलंबिया-न्यू-यॉर्क, हिंदी विश्विद्यालय-वर्धा जैसे कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों द्वारा आमंत्रित और सम्मानित, दिव्या जी के लेखन पर दर्जनों शोध किए जा चुके हैं। दूरदर्शन द्वारा आपकी कहानी, सांप-सीढ़ी, पर एक टेली-फ़िल्म निर्मित की है। डा निखिल कौशिक द्वारा निर्मित फ़िल्म, ‘घर से घर तक का सफ़र: दिव्या माथुर’ को विभिन्न फिल्म-फेस्टिवल्स में शामिल किया जा चुका है।